सत्संतों की महिमा
( तर्ज - आओ सभी मिल जायके )
घर-घरमें नहीं होते है ,
अवलिया मिय्याँ !
है भाग जिनके उँचे ,
वेहि देखते दिया ! || टेक ||
अंधेर सबके आँखो ,
चहूँ ओर कामका ।
कैसे बनेगा उनसे ,
सुमरण श्रीरामका ?
'सुमरण नहीं तो मरन '
कोनसा जता गया ॥१ ॥
वही सन्त है गजानन !
लाखों में सितारा ।
अलमस्त रहा जीवन में ,
प्रेम का प्यारा ॥
हिन्दु - मुसलमानों में ,
प्रेम भर दिया | ॥२ ॥
लाखोंने करी स्मारक को
घर बैठते देखा ।
जिसने पढ़ी है पोथी ,
है ज्ञान उन्हींका ॥
तुकड्या कहे , उस प्रेमको ,
खाया और खिलाया | ॥३ ॥
सोंसर - दिग्रस प्रवास दि . ५ - ९ -६१
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